Wednesday, March 26, 2014

गरीबी









देखिए तो सही, उनकी आवारगी कैसी है?


जिंदगी गुजारी बेबसी में, बेचारगी कैसी है?


लुत्फ लेते रहे लोग उनकी गरीबी से 'चिलमन'--


लुत्फ लेने वालों की दीवानगी कैसी है?


Friday, March 21, 2014

चिलमन बेगाने हुए........

उनकी खुमारी छाई कुछ इस कदर,
कुछ वो बेहोश थे, कुछ हम बेहोश थे!
जिंदगी में वो आईं कुछ इस कदर,
कुछ वो लापता, कुछ हम लापता!
'चिलमन' बेगाने हुए कुछ ऐसे हमलोग,
वो हमें ढूँढते रहे, हम उन्हें ढूँढते रहे!

घाट से लौटा हूँ---: घाट से लौटा हूँ----- घाट पर ज्यूँ ही पहुँचा देखा क...

घाट से लौटा हूँ---: घाट से लौटा हूँ----- घाट पर ज्यूँ ही पहुँचा देखा क...: घाट से लौटा हूँ----- घाट पर ज्यूँ ही पहुँचा देखा किसी को नहाते हुए , लोगों की टकटकी निहारती है- पर पीछे से वह लड़की है , मुँह द...

Thursday, March 20, 2014

घाट से लौटा हूँ-----
घाट पर ज्यूँ ही पहुँचा
देखा किसी को नहाते हुए,
लोगों की टकटकी
निहारती है-
पर पीछे से वह लड़की है,
मुँह देखने पर पता चलता है
कि वह एक लड़का है।
भले ही समाज में लड़का-लड़की में,
समानता वाली बात कही जाती है
पर—
लोगों के देखने के नज्ररिए में
फर्क नही पड़ा है।
एक सज्जन पुरुष तो यहाँ तक सोचते हैं
कि काश मेरी शादी अब हुई होती—
पर यह नहीं सोचते
कि अब हुई होती
तो-
कभी नही हुई होती।
क्या लड़कियों के प्रति
हमारी सोच कभी नही बदलेगी?
क्या यूँहीं हमारा देखने का नजरिया बना रहेगा?
जब मैं यह सोच रहा होता हूँ
उसी क्षण एक लड़की
घाट पर तेजी से नीचे उतरती हुई
अपने कंधे से एक को धकियाते हुई आती है
परिणामतः –
कई लोग ऊपर जाना छोड़
उसके पीछे-पीछे नीचे आने लगते हैं।
बगैर यह सोचे कि-
धक्का उसने जानबूझकर नहीं दिया होगा!
भीड़ के कारण लग गया होगा।
लड़की हाथों में दोना, दोने में फूल और दीप लिए
गंगा जी की तरफ आती है
और—
हाथ का दोना पानी में प्रवाहित कर देती है
ना जाने क्यों?
लोग आग और पानी को एक साथ रखते है
और गंगा जी भी क्या करेंगी
उस दोने को?
पर, चल रहा है तो हम भी चला रहे हैं।
वैसे आग और पानी से याद आया
कि आग और पानी का
गहरा संबंध है
अगर, ऐसा नहीं होता तो
झरने में नहाती हुई स्त्री
कैसे हॉट लगती?
खैर—
अगर हम बदलें
तो—
जग बदलेगा।
लड़का-लड़की की समानता का
मतलब सरेगा।
नहीं तो दुनिया तो चल ही रही है,
आप भी चलिए।
      --गुलाब चंद जैसल

             21-03-14